pankesh.bamotra

Random deep thoughts. Mostly serious, sometimes fun.

जो वाकिफ़ कर दूँ खुरपेच सिलसिलों से तुझको, तो तुम कर्ज़दार ना हो जाओ मेरे,

ज़िंदगी बोलते हो तुम जिसको ए साहिब, हमनें टूटे हुए दीयों की तरह बन्नी पे सजा रखी है।


काँच का बुरादा बनाकर हमने आँखों पे अपनी सजा दिया, उनको लगा के हम रोशन हो उठे,

रोशन तो थीं आंखें, ना झपकी इस डर से, कि आंखें बंद कर लीं तो आप दिखना ना बंद हो जाओ।


प्यार की हसरत की ज़द्दोज़हत में तुमने प्यार करना भूला दिया,

अब बस एक ही हसरत है कि तुझे स्कूल के आखिरी बेंच पे मिलूं फिरसे प्यार करने के लिए।


होती जो आंखें पाक तुम्हारी, तो समझ जाते कि लूटना सिर्फ तुम्हारा दिल था,

अफसानो का ज़ोर ऐसा चला तुम्हारे दिल पर, कि हमारी गरीबीअत की नुमाइश भी बिक ना सकी।


कंधे ना होते उधार के बाज़ार में तो मरना भी जुर्म हो जाता,

कर्ज़दार हूँ उनका जो संभाल लिये मुझको, वरना मर्ज़ में मुस्कुराना भी जुर्म हो जाता।


खत्त खोला खत्त में उनका पैग़ाम आया, थोड़ी कम परवाह क्यों नहीं करते हमारी,

ये सुनके हमनें परवाह की बयालीस लीटर वाली बाल्टी उनपे गिरा दी।


सो जाओ आंखों के मोहल्ले में मचलते ए ख्वाबो, बुझ गए तो हमको ही कोसोगे,

उनको क्या पड़ी है तुम्हारी, जो तुम्हारी गलियों में भी अनजान हुए फिरते हैं।


पन्नो की सूखी स्याही निशाँ है कि अरसों से तुम्हे याद कर रहे हैं,

वरना आखों की नमी अभी भी सोच रही है कि कल की ही तो बात है।


दुनिया पूछती है हमसे कि बेटा क्या काम करते हो?

जी हम जलते हुए घरों की इन्शुरन्स करते हैं।


ख्वाइशें ही ऐसी थीं कि आपसे ब्यान ना कर सके,

आप ये सोचते रहे कि साला गूंगा तो नहीं।


चार इंच का फरक है, उनमें और हम में,

हम चार इंच बड़े दिल वाले, वो चार इंच हाइट में ही छोटे हैं।


ओढ़ लेता हूँ मुस्कराहट कभी हिम्मत करके, वरना हमारी चोटों के दीवाने तो बोहोत हैं,

आईये कभी थोड़ा दिलदार होके बाज़ार में, इनको अपना सही खरीदार तो मिले।


किसने कहा है के रोना सिर्फ आँखों को ही आता है,

दुआएं हमारे हाथों में छुप कर अक्सर मन हल्का कर लेती हैं।


कितनी परवाह करते हो उनकी, पुछा किसी ने हमसे,

उनके अश्क़ भी हमारी आखों में मेहफ़ूज़ रहते हैं, इतनी।


लोगों ने हाथ फैला के माँगा - रोटी, कपड़ा, मकान, और हमनें? – नीयत!


सलामत रहे प्रीत मेरे ऐब न देख,

जुड़ा जब से दिल तुझसे आईना भी नुक्स देख रहा है।


बेकदर हो इसको हमने बहुत पहले ही अपना लिया था,

मगर दिल उदास था तेरी नाकोशिश देख के।


लोग अच्छाई ढूंढते हैं और हम हैं ऐबों से भरपूर,

इक बुराई हमारी ये भी है कि हम बिना सोचे निभा भी लेतें हैं।


सूखी स्याही को नमी दे रहें हैं अश्क़ हमारे,

उन्हें भुला भी दे ए-दिल-ए-नादान जिन्हें अल्फ़ाज़ों का मोल नहीं।


मिलने आ जाओ ना किसी बहाने से तुम,

उजड़े हुए दिल को बाहार में भी तेरी कमी है।


मज़हब की परिभाषा है प्यार का होना,

प्यार का ना होना तोह खुदा को भी कबूल नहीं।


भूली हुई यादों को पलकों पे ही रखा करतें हैं हम,

कभी बाहार ना हुई ज़िंदगी में तोह आँखों में भर लेंगे इन्हें।


हमारे अश्क़ आँखों की दहलीज़ नहीं लांघते कभी,

ये भी तेरा ही कमाल है कि इनको हमारी गालों से मोहब्बत जो हो गयी।


ऐ बहारों हो सके तोह आ जाना उनके हिस्से किसी बहाने से तुम,

जिन्होंने हमें भूलकर तेरी चाहत को सजा रखा है।


उनकी फितरत जो जाननी चाही हमनें तोह पाया कि उनका तोह हर रंग ही निराला है।


फीके से हैं रंग तेरी जुदाई में, - दिल तोह उदास था ही तेरी बेरुखी देख के।


दिल-ए-नादान घायल नहीं था तेरे हुस्न-ए-रुखसार पे,

सबब था खुद को खुद से रिहा करने का।


पाक निगाहों ने बक्श दी रहमत ऐसी,

अब आईना भी हममें अक्स ढूंढ़ता है।


रूठ के दुनिया से थामा था दामन तेरा,

आशियाना हासिल हुआ फिर भी अफ़सुर्दगी का।